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Guru Nanak Dev Ji writes that when the heart of the disciple is struck with the teachings of the Guru, he becomes his servant and receives spiritual blessings in return. We, therefore, develop an attitude of service in the world, only then we become worthy of Him, Read more about the concept of sewa in Satnam 63
गुरु नानक देव जी ने लिखा है। कि जब इस शरीर पर बाणी का बाण असर करता है तो जीव सेवक बन जाता है जिससे उसे आत्मिक आनंद प्राप्त होता है, तब जगत् उसे नाशवान दिखाई देने लगता है। दुनिया में सेवा करनी चाहिए, तभी प्रभु की हजूरी में बैठने का स्थान मिलता है। सेवा की बरकत से मनुष्य बेफिक्र हो जाता है।' सेवा के बारे में और जानने के लिए पढ़ें सतनाम 63.
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