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In the Sanatan Dharma, all the worldly affairs have been consigned to the domain of Maya and are condemned. In the Adi Granth also, interest in the worldly activities has been given a lower value than the meditation. What is the relationship between worldly action and the worship of God? Read Satnam 61 to get the answer.
सनातन धर्म में यह कहा गया है कि सारी सांसारिक गतिविधि व दौड़धूप माया के तीन गुणों का खेल है, यह एक मायिक कर्म है। ध्यान रहे कि माया का एक अर्थ धन भी है। धन का वेदकालीन अर्थ है - दौड़, दौड़स्पर्धा, दौड़स्पर्धा में मिला पारितोषिक। इसके बाद का प्रचलित अर्थ है मूल्यवान वस्तु, धन, संपत्ति। ……….. धन अर्थात् वह वस्तु जिसके लिए सब भागदौड़ करते हैं। इस प्रकार वैदिक काल से ही समस्त सांसारिक दौड़भाग को मायिक व हेय कर्म माना गया है। आदिग्रंथ में भी सांसारिक कर्म को सच्चे कर्म, प्रभु-भक्ति की तुलना में हेय कहा गया। सांसारिक कर्म और प्रभु भक्ति के बीच संबंधों को जानने के लिए पढ़ें सतनाम 61
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