top of page
Writer's pictureGuru Spakes

Satnam ep20 – सतनाम भाग 20

Updated: Aug 10, 2024

How you can sing the praise of the God? Also learn about the Akhand Keertan only in this article!


आप भगवान की स्तुति कैसे गा सकते हैं? साथ ही केवल इस लेख में अखंड कीर्तन के बारे में जानें!

Satnam ep20
Satnam ep20

Read the previous article▶️Satnam ep19


(पीछे हमने जाना कि आदिग्रंथ व सनातन धर्म के अन्य सद्ग्रंथों के अनुसार परमात्मा की उपासना का आध्यात्मिक स्थान दोनों भौहों के मध्य में है जहां नासिका समाप्त होती है। यहीं ध्यान द्वारा उस अव्यक्त तत्त्व का चिन्तन करना चाहिए। अब आगे)


इस दृष्टि से आदिग्रंथ में 'सोहिला' नाम से संकलित वाणी, जिसे 'कीर्तन सोहिला' व 'आरती सोहिला' भी कहा जाता है, के प्रथम शब्द का अध्ययन किया जा सकता है। इस शब्द के प्राक्कथन में भाई वीर सिंह लिखते हैं, "ऐसा प्रतीत होता है कि किसी के प्रति सद्गुरु जी का उपदेश हुआ है, और उसने विनय की है कि श्रीजी ने नाम व गुणगान का उपदेश किया है, वह एकांत में बैठ कर करना है अथवा कोई विशेष स्थान, वन, तीर्थ, मंदिर है जहाँ यह विशेष रूप से फलीभूत होता है? उसके उत्तर में सद्गुरु जी ने जो उपदेश दिया है, वह इस शब्द में गुंथित है।''(संथया, पोथी पहली, पृ -203) अर्थात्‌ प्रश्न यह हुआ है कि नाम-जप कहाँ बैठ कर किया जाये, इसका उत्तर देते हुए गुरू साहिब लिखते हैं :

जै घरि कीरति आखीऐ करते का होइ बीचारो ॥

तितु घरि गावहु सोहिला सिवरिहु सिरजनहारो ॥(1-12)


इसका अन्वय होगा, 'जै घरि करते का कीरति होई आखीऐ (तित घर) बीचारो॥ (हां) तितु घरि सोहिला गावहु, सिरजणहारो सिवरिहु॥' अर्थात्‌ 'जिस घर में करतार का कीर्तन होता हुआ बताया जाता है (उस घर में निवास करके) नाम अभ्यास करो। (हाँ) उसी घर में (प्रभु का) यशगान करो, (उस) सिरजणहार का सिमरन करो।' 'घर' पद के गुरूवाणी मे अनेक अर्थ हैं, जैसे निवासस्थान, शरीर, अंतःकरण, शास्त्र, स्वरूप, दशमद्वार। यहाँ इसका अर्थ दशमद्वार है। अर्थ होगा 'जिस दशमद्वार में करतार का कीर्तन होता हुआ बताया जाता है......।' जहां तक कीर्तन पद का संबंध है, अनहद शब्द के ध्वनिमय स्वभाव और अन्दर इसकी अनेक राग रागनियाँ सुनाई देने के कारण, गुरूवाणी में इसे कीर्तन, हरिकीर्तन, अखण्ड कीर्तन भी कहा गया है। चौथे गुरू रामदास जी फरमाते हैं कि सद्गुरु ने मुझे हरि के नाम का भेद दे दिया है और मैं अब सदा अन्दर इस हरिनाम संकीर्तन में मग्न रहता हूं। मैं पल भर के लिए भी इस कीर्तन के बिना नहीं रह सकता :

हउ अनदिनु हरि नामु कीरतनु करउ॥

सतिगुरि मो कउ हरि नामु बताइआ हउ हरि बिनु खिनु पलु रहि न सकउ॥(4-369)


गुरू अर्जुन देव जी कहते हैं कि अपने मन में नाम का खजाना जमा करना चाहिए, क्योंकि यही सच्चा कीर्तन है और यही हरि के गुणगान का सच्चा साधन है : मन महि सिंचहु हरि हरि नाम॥ अनदिनु कीरतनु हरि गुण गाम॥(5-807) जिन भाग्यशाली जीवों को पूरा सद्गुरु मिल जाता है, उनकी लिव सदा अन्दर के अखण्ड कीर्तन से जुड़ी रहती है : अखंड कीरतनु तिनि भोजनु चूरा॥ कहु नानक जिसु सतिगुरू पूरा॥(5-236) गुरू साहिब फरमाते हैं कि कलियुग में जीव के छुटकारे का एकमात्र साधन गुरमुखों की बताई हुई युक्ति के अनुसार आत्मा को अन्दर इस अखण्ड कीर्तन से जोड़ना है : कलजुग महि कीरतु परधाना॥ गुरमुखि जपीऐ लाइ धिआना॥(5-1075) आत्मा को अन्दर शब्द के अखण्ड कीर्तन से जोड़ना हर प्रकार की करनी का सार है और कलियुग में जीव के पार उतरने का सच्चा साधन है :

कलि कीरति सबद पछानु ॥ एहा भगति चूके अभिमान ॥(3-424)

हरि कीरति उतमु नामु है विचि कलजुगि करणी सार ॥(4-1314)


इस चर्चा से विचाराधीन पंक्ति का अर्थ निकलेगा : 'जिस दशमद्वार में करतार के शब्द की ध्वनि होती हुई बताई जाती है, उस स्थान पर निवास करके अर्थात्‌ ध्यान को एकाग्र करके नाम-अभ्यास करो।' यह दशमद्वार हमारी दोनों भौहों के मध्य में स्थित है, यहाँ हमने अपनी चेतना को एकाग्र करना है, ऐसा करना ही प्रभु का यशगान करना है, और इससे स्थायी सुख की प्राप्ति होती है : हउ वारी जितु सोहिलै सदा सुख होइ॥(1-12)


इसी सत्य की अभिव्यक्ति के लिए बाणी में कुछ और शब्दों को भी नियोजित किया गया है। गुरू नानक देव जी एक स्थान पर लिखते हैं : बाहरि ढूँढि विगुचीऐ घर महि बसतु सुथाइ ॥(1-691) 'बसतु' का अर्थ परमसद्‌वस्तु से है। इसको यदि शरीर से बाहर तलाश करें तो ख्वार होना पड़ता है, यह घर अर्थात्‌ शरीर में ही है और एक सुंदर स्थान सुथाई पर है। यहाँ भ्रूमध्य को सुंदर स्थान कहा जा रहा है क्योंकि यह स्थान समस्त सौंदर्य व रस के मूल परमात्मा का निवास-स्थान है। एक अन्य स्थान पर इसे सुथाई न कहकर सुथानि कहा गया है : अरपिआ त सीसु सुथानि गुर पहि संगि प्रभू दिखाइआ॥(5-247) 'जिस व्यक्ति ने सुंदर स्थान पर अपना शीश गुरू को अर्पण किया, उसे गुरू ने प्रभु को पास ही दिखा दिया।' गुरु अर्जुन देव लिखते हैं :

लगड़ी सुथानि जोड़नहारै जोड़िया ॥

नानक लहरी लख सै आन डुबण देइ न मा पिरी ॥(5-519)


'मेरी चितवृति सुंदर स्थान पर टिक गई है। प्रीत की यह गांठ जोड़नहार प्रभु ने जोड़ी है। अब संसार-सागर में भले ही सैंकड़ों-लाखों लहरें आयें, मेरा प्रियतम मुझे डूबने नहीं देगा।' भाई वीर सिंह यहाँ 'सुथानि' पद का अर्थ करते हैं 'वह स्थान जो सभी स्थानों का शिरोमणि है। जहां चितवृत्तियों को टिकाना ऐसे है जैसे जहाज को लंगर से बांध देना जिससे तूफान का कोई असर नहीं होता।' यहाँ भी 'सुथानि' पद का गूढ़ अर्थ भ्रू-मध्य ही है। एक और स्थान पर आप लिखते हैं :

चला चला जे करी जाणा चलणहारू ।

जो आइआ सो चलसी अमरू सु गुरू करतारू ॥

भी सचा सलाहणा सचै थानि पिआरु ॥(1-63)


'यदि मैं सदा याद रखूँ कि मैंने जगत्‌ से अवश्य चले जाना है, यदि मैं याद रखूँ कि सारा जगत्‌ ही चलायमान है, जगत्‌ में जो भी आया है वह आखिरकार चला जायेगा, सदा स्थिर एक गुरू-परमात्मा ही है तो फिर सच्चे स्थान पर बैठ कर, प्रेमपूर्वक सच्चे प्रभु का यश्गान ही करना जरूरी है।' यहाँ 'सचै थानि' से अभिप्राय भ्रूमध्य ही है। एक और स्थान पर तीसरे गुरू लिखते हैं : ऐथे बूझै सु आपु पछाणै हरि प्रभु है तिसु केरा॥(3-602) ऐसा प्रतीत होता है कि गुरू जी किसी को निजस्वरूप के साक्षात्कार का उपदेश दे रहे हैं और नाटकीय अंदाज में अपनी अंगुली को दोनों भौहों के मध्य रखते हुए कहते हैं ऐथे बूझै अर्थात्‌ जो जीव अपनी 'मैं' के रहस्य को भ्रूमध्य में जानता है, वे अपने आपको जानेगा और वह कहेगा कि मेरा केवल एक परमात्मा ही है। इसी तरह बाणी में हमारे इस आत्मिक केंद्र को 'अवघट्ट' भी कहा गया है। घट का अर्थ घड़ा है जबकि अव का अर्थ है उलटा। हमारे शरीर की बुनावट ऐसी है कि धड़ के ऊपर सिर ऐसा लगता है जैसे घड़े को उलटा रख दिया गया हो। गुरु नानक लिखते हैं :

सबदि रते पूरे बैरागी।।

अउघट हसत महि भिखिआ जाचे एक भाइ लिव लागी।।(1-1332)


आप योगी को संबोधित करते हुए कहते हैं कि जो शब्द में लीन हैं वे वैराग्य में सिद्धहस्त हैं। वे अवघट्टस्थ होकर प्रभु के दर पर भिक्षा मांगते हैं और उनकी लिव एक प्रभु में लगी रहती है। 'अवघट्टस्थ' शब्द से ऐसे अभ्यासी पुरुष की ओर संकेत होता है जिसने अपनी चेतना को दोनों भौंहौं के पीछे स्थिर कर लिया है।


लेकिन इसके साथ ही शरीर में आत्मिक केंद्र का दूसरा दावेदार हृदय भी है।

(उसका अध्ययन आगे किया जायेगा।)


Continue reading▶️Satnam ep21

6 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page